Thursday, April 23, 2009

तुम्हारा एहसास !!!




साँझ की मद्धम रौशनी में, सर्द मौसम की आगोश में,
दक्षिण से आती हुई..हवा के झोंके ने ली हल्सकी सी अंगडाई....
ये भीनी सी खुशबु.......ये हलकी बारिश...तुम्हारे साथ होने एह्साह कहू
या फ़िर है ये मौसम की कशिश , शायद इसीलिए मैं आज तुमसे से ही शरमाई ......

मेरी हर खामोश खवाहिश परआज है तुम्हारा अधिकार , हर सितम तुम्हारा मुझे है स्वीकार
मखमली इस एहसास में , प्यार के इसी लम्हे में बनना चाहू मैं तुम्हारी परछाई .....
अतीत के उन पन्नो को चीरकर ही सही, आ जाओ यादों के इस पार
अब न रहना चाहू मैं इन अंजानो, बेगानों के साथ....इन सब से भली लगे अब मुझे तन्हाई ....

मेरी हर प्रार्थना , हर दुआ में अब शामिल हो तुम, अरदास में भी लेती हूँ तुम्हारा नाम
बांवरी हूँ , पगली हूँ , तुमसे मिलने की चाह में मैंने सुध बुध भी बिसराई .....
तस्वीरो , ख्वाबो की ताबीर नही चाहिए अब मुझे , केवल चाहू तुम्हारा साथ
नही, ये आंसू नही है.....तुम्हारे अशेष प्यार है... इसीलिए शायद मेरी आँख भर आई !!!

मखमली इस एहसास में , प्यार के इसी लम्हे में बनना चाहू मैं तुम्हारी परछाई .....
अब तो अच्छी लगे मुझे ये तन्हाई !!!!




Wednesday, February 18, 2009

स्वप्न और यथार्थ !!!!

कुछ अधबुने, अनछुए से सपने ...खुली आँखों से देखे थे ! देखे थे उन इकरार के पलों को ....कभी देखा था उस इज़हार के पल को भी.... पता नही हकीकत में क्यूँ नही हो पता ये सब मुझसे....हर बार सोचती हूँ आज मिलूंगी तो कह ही दूंगी उससे ...पर हिम्मत ही नही बनती के तुम्हारे सामने जाकर अपने अधबुने अनछुए सपने को साकार करू.... तुमसे कहूँ ....तुमसे बोलूं .......क्या तुम अपने रंगों से मेरे जीवन में रंग भरोगे......या फ़िर ये कह दू......धुन मैंने बना ली है...तुम्हारे शब्दों की प्रतीक्षा है ॥
विचारों के इन्ही अधेड़ बुन में नए नए कल्पनाए जन्म लेती है...और उन कल्पनाओ को यथार्थ की परिभूमि पर लाने के लिए तुम्हारा सहारा अपेक्षित है....
अपेक्षित... है एक संकेत... संक्षिप्त ही सही ....मुझे ये तो पता चल पाए के मैं ही अकेले नही जी रही हूँ इस एहसास tum bhi jeete ho un ehsaso ko mere saath !
ये बिल्कुल वही एहसास है जो पहली बारिश में भीगे मिटटी की खुशबु दिलाती है.....पतझर के बाद जब पीपल कऐ नए नए पत्तो को देखते हुए होता है..या फ़िर सर्द मौसम में खिले हुए गुलाब par जो ओस की बुँदे चमकती है ...और सूरज की रौशनी को उस ओस के पर देखने se milta hai ....खुशनुमा और प्रसन्नचित है।
मैं ये नही कहती की तुम्हे देखने से मेरी दिल की धड़कने तेज़ हो जाती है... नही ही मैं ये कहूँगी...की एक दिन तुम्हे न देखू ...तो मेरा जीना दूभर हो जाता है.... नही ये कहूँगी ........के तुम्हे खोने के डर से मेरा दिल कांपता ज़रूर है.....जब तुम्हे देखा ही नही....जब तुम्हे पाया ही नही तो फ़िर ये खोने का एहसास कैसा ??
ये जो तुम har pal mujhe nazarandaz karte ho na......मुझे और तुम्हारे करीब ला रहा है.... करीब ला रहा है हर वो चाहत ......जो मेरी नियति में है ही नही .......
तुम्हारा क्या ??? तुम तो एक सपना हो....क्या कभी सपने भी हकीकत बनते है ??? कभी आओगे में तुम मेरे जीवन में बनके शीतल प्रेमलहर ??? या फ़िर मेरी नियति यही है के मैं तुम्हारी इन लहरों को गिनतइ रहूँ और इर्षा के अग्नि में जलूं जब जब तुम उन कश्तियों से अटखेलियाँ करो .........
यह प्रश्न अभी भी निरुत्तर है !!!!