साँझ की मद्धम रौशनी में, सर्द मौसम की आगोश में,
दक्षिण से आती हुई..हवा के झोंके ने ली हल्सकी सी अंगडाई....
ये भीनी सी खुशबु.......ये हलकी बारिश...तुम्हारे साथ होने एह्साह कहू या फ़िर है ये मौसम की कशिश , शायद इसीलिए मैं आज तुमसे से ही शरमाई ......मेरी हर खामोश खवाहिश परआज है तुम्हारा अधिकार , हर सितम तुम्हारा मुझे है स्वीकारमखमली इस एहसास में , प्यार के इसी लम्हे में बनना चाहू मैं तुम्हारी परछाई .....अतीत के उन पन्नो को चीरकर ही सही, आ जाओ यादों के इस पार अब न रहना चाहू मैं इन अंजानो, बेगानों के साथ....इन सब से भली लगे अब मुझे तन्हाई ....मेरी हर प्रार्थना , हर दुआ में अब शामिल हो तुम, अरदास में भी लेती हूँ तुम्हारा नामबांवरी हूँ , पगली हूँ , तुमसे मिलने की चाह में मैंने सुध बुध भी बिसराई .....तस्वीरो , ख्वाबो की ताबीर नही चाहिए अब मुझे , केवल चाहू तुम्हारा साथ नही, ये आंसू नही है.....तुम्हारे अशेष प्यार है... इसीलिए शायद मेरी आँख भर आई !!!मखमली इस एहसास में , प्यार के इसी लम्हे में बनना चाहू मैं तुम्हारी परछाई .....
अब तो अच्छी लगे मुझे ये तन्हाई !!!!