Wednesday, February 18, 2009

स्वप्न और यथार्थ !!!!

कुछ अधबुने, अनछुए से सपने ...खुली आँखों से देखे थे ! देखे थे उन इकरार के पलों को ....कभी देखा था उस इज़हार के पल को भी.... पता नही हकीकत में क्यूँ नही हो पता ये सब मुझसे....हर बार सोचती हूँ आज मिलूंगी तो कह ही दूंगी उससे ...पर हिम्मत ही नही बनती के तुम्हारे सामने जाकर अपने अधबुने अनछुए सपने को साकार करू.... तुमसे कहूँ ....तुमसे बोलूं .......क्या तुम अपने रंगों से मेरे जीवन में रंग भरोगे......या फ़िर ये कह दू......धुन मैंने बना ली है...तुम्हारे शब्दों की प्रतीक्षा है ॥
विचारों के इन्ही अधेड़ बुन में नए नए कल्पनाए जन्म लेती है...और उन कल्पनाओ को यथार्थ की परिभूमि पर लाने के लिए तुम्हारा सहारा अपेक्षित है....
अपेक्षित... है एक संकेत... संक्षिप्त ही सही ....मुझे ये तो पता चल पाए के मैं ही अकेले नही जी रही हूँ इस एहसास tum bhi jeete ho un ehsaso ko mere saath !
ये बिल्कुल वही एहसास है जो पहली बारिश में भीगे मिटटी की खुशबु दिलाती है.....पतझर के बाद जब पीपल कऐ नए नए पत्तो को देखते हुए होता है..या फ़िर सर्द मौसम में खिले हुए गुलाब par जो ओस की बुँदे चमकती है ...और सूरज की रौशनी को उस ओस के पर देखने se milta hai ....खुशनुमा और प्रसन्नचित है।
मैं ये नही कहती की तुम्हे देखने से मेरी दिल की धड़कने तेज़ हो जाती है... नही ही मैं ये कहूँगी...की एक दिन तुम्हे न देखू ...तो मेरा जीना दूभर हो जाता है.... नही ये कहूँगी ........के तुम्हे खोने के डर से मेरा दिल कांपता ज़रूर है.....जब तुम्हे देखा ही नही....जब तुम्हे पाया ही नही तो फ़िर ये खोने का एहसास कैसा ??
ये जो तुम har pal mujhe nazarandaz karte ho na......मुझे और तुम्हारे करीब ला रहा है.... करीब ला रहा है हर वो चाहत ......जो मेरी नियति में है ही नही .......
तुम्हारा क्या ??? तुम तो एक सपना हो....क्या कभी सपने भी हकीकत बनते है ??? कभी आओगे में तुम मेरे जीवन में बनके शीतल प्रेमलहर ??? या फ़िर मेरी नियति यही है के मैं तुम्हारी इन लहरों को गिनतइ रहूँ और इर्षा के अग्नि में जलूं जब जब तुम उन कश्तियों से अटखेलियाँ करो .........
यह प्रश्न अभी भी निरुत्तर है !!!!